श्री अगस्तेश्वर महादेव मंदिर
(1) श्री अगस्तेश्वर महादेव : हरसिध्दि मंदिर के पीछे संतोषी माता के मंदिर मे यात्रा यही से प्रारंभ होती है ,
तथा अन्त मे पुनः श्री अगस्तेश्वर महादेव के दर्शन -पूजन के उपरांत संपूर्ण होती है
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब दैत्यों का आधिपत्य देवताओं पर बढ़ने लगा तब निराश होकर देवतागण पृथ्वी पर भ्रमण करने लगे।
एक दिन जब देवतागण वन में भटक रहे थे तब उन्होंने वहां सूर्य के सामान तेजस्वी अगस्त्य ऋषि को देखा।
ऋषि अगस्त्य को देवताओं ने दैत्यों से अपनी पराजय के बारे में बताया जिसे सुन कर अगस्त्य ऋषि अत्यधिक क्रोधी हुए।
उनके क्रोध ने एक भीषण ज्वाला का रूप लिया जिसके फलस्वरूप स्वर्ग से दानव जल कर गिरने लगे।
यह देख कर ऋषि, मुनि आदि काफी भयभीत हुए और पाताल लोक चले गए।
इस घटना ने अगस्त्य ऋषि को काफी उद्वेलित किया।
दुखी होकर वे ब्रह्माजी के पास गए और ब्रह्म हत्या के निवारण हेतु ब्रह्माजी से विनय करने लगे कि दानवों की हत्या से मेरा सब तप क्षीण हो गया है कृपया कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मुझे मोक्ष प्राप्त हो।
ब्रह्मा जी का उपाय
वहां जाकर उनकी पूजा अर्चना कर तुम समस्त पापों से मुक्त हो सकते हो। ब्रम्हाजी के कहे अनुसार अगस्त्य ऋषि ने उस लिंग की पूजा की और वहां तपस्या की जिससे भगवान महाकाल प्रसन्त हुए। भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि जिस देवता का लिंग पूजन तुमने किया है, वे तुम्हारे नामों से तीनों लोकों में प्रसिद्ध होंगे। तभी से यह शिव स्थान अगस्त्येश्वर नाम से विख्यात डुआ।
अगस्त्येश्वर महादेव की आराधना साल भर में कभी भी की जा सकती है लेकिन श्रावण मास में इसका अधिक महत्व होता है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि अ्टमी और चतुर्दशी को जों इस लिंग का पूजन करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है और वह मोक्ष को प्राप्त करता है।